तुम्हें कैसे कहें कितना सुखद है रात भर रोना
खरैरी खाट पर सोना, सुनहरी रात को ढ़ोना
पड़े रहना कहीं चुपचाप से इक ढूंढ कर कोना
दुखों को काटते रहना, नये फिर दर्द बो देना
बिता देना अभागन रात को इक लाश में ढलकर
सुबह हो जाये तो फिर वापसी इक आदमी होना
बहाकर आँसुओं को रौशनी आँखों की खो देना
दिलों के रास्ते खोना, दिलों के वास्ते खोना
तुम्हें कैसे कहें कितना सुखद है रात भर रोना
तुम्हें कैसे कहें कितना सुखद है रात भर रोना
खरैरी खाट पर सोना, सुनहरी रात को ढ़ोना
पड़े रहना कहीं चुपचाप से इक ढूंढ कर कोना
दुखों को काटते रहना, नये फिर दर्द बो देना
बिता देना अभागन रात को इक लाश में ढलकर
सुबह हो जाये तो फिर वापसी इक आदमी होना
बहाकर आँसुओं को रौशनी आँखों की खो देना
दिलों के रास्ते खोना, दिलों के वास्ते खोना
तुम्हें कैसे कहें कितना सुखद है रात भर रोना
आज मुझे भी इश्क़ हुआ है
लगता है संसार इश्क़ हो
मैं ही आशिक़, इश्क़ भी मैं ही
और मेरा घर-बार इश्क़ हो
मान इश्क़ हो, शान इश्क़ हो
मौत और मेहमान इश्क़ हो
इश्क़ की हो सरकार जहाँ पर
और जहाँ बाज़ार इश्क़ हो
आशिक़ पहरेदार बना हो
उस पर थानेदार इश्क़ हो
बहती नदिया, गिरते झरने
इश्क़ किनारा, नाव इश्क़ हो
बिंदिया, चूड़ी, लाली, सुरमा
रंग-रोगन-सिंगार इश्क़ हो
झगड़ा, गाली, प्यार शरारत
दौलत, दवा-ओ-दुआ इश्क़ हो
मौला, पंडित, गुरु इश्क़ हो
और ख़ुदा का ख़ुदा इश्क़ हो
जल, जीवन, जंजीर इश्क़ हो
माला, मंदिर, मीत इश्क़ हो
भाषा, बोली, भेष, बहाना
गीता और कुरान इश्क़ हो
इश्क़ हुआ है अब "कुमार" को
लगता है संसार इश्क़ हो
आज मुझे भी इश्क़ हुआ है
लगता है संसार इश्क़ हो
मैं ही आशिक़, इश्क़ भी मैं ही
और मेरा घर-बार इश्क़ हो
मान इश्क़ हो, शान इश्क़ हो
मौत और मेहमान इश्क़ हो
इश्क़ की हो सरकार जहाँ पर
और जहाँ बाज़ार इश्क़ हो
आशिक़ पहरेदार बना हो
उस पर थानेदार इश्क़ हो
बहती नदिया, गिरते झरने
इश्क़ किनारा, नाव इश्क़ हो
बिंदिया, चूड़ी, लाली, सुरमा
रंग-रोगन-सिंगार इश्क़ हो
झगड़ा, गाली, प्यार शरारत
दौलत, दवा-ओ-दुआ इश्क़ हो
मौला, पंडित, गुरु इश्क़ हो
और ख़ुदा का ख़ुदा इश्क़ हो
जल, जीवन, जंजीर इश्क़ हो
माला, मंदिर, मीत इश्क़ हो
भाषा, बोली, भेष, बहाना
गीता और कुरान इश्क़ हो
इश्क़ हुआ है अब "कुमार" को
लगता है संसार इश्क़ हो
तुम चली आओ अँधेरे में है मेरी ज़िंदगी
तुम चली आओगी तो फिर ज़िंदगी बन जायेगी
फिर चली आओ दुपहरी में उसी पीपल तले
बनती है कोई कहानी, बनती है बन जायेगी
तेरी दी हर इक निशानी पत्थरों पर चोट है
फिर अगर कोई हो निशानी ज़िंदगी बन जायेगी
छाप तेरी पायलों की है मेरे सीने पे अब
फिर दुबारा छाप दो कि छाप ये मिट जायेगी
शाम को जब खेत पे जाने लगो तो देखना
नीम की जड़ में तुम्हें चिठ्ठी मेरी मिल जायेगी
रख गयी थी जिस जगह तुम बेर कुछ मेरे लिये
ठीक तुमको उस जगह पर इक अंगूठी पायेगी
याद है तुझको मैं तेरे गेट पे झूला किया
देखना जाकर उधर ख़ुशबू मेरी मिल जायेगी
तुम चली आओ अँधेरे में है मेरी ज़िंदगी
तुम चली आओगी तो फिर ज़िंदगी बन जायेगी
फिर चली आओ दुपहरी में उसी पीपल तले
बनती है कोई कहानी, बनती है बन जायेगी
तेरी दी हर इक निशानी पत्थरों पर चोट है
फिर अगर कोई हो निशानी ज़िंदगी बन जायेगी
छाप तेरी पायलों की है मेरे सीने पे अब
फिर दुबारा छाप दो कि छाप ये मिट जायेगी
शाम को जब खेत पे जाने लगो तो देखना
नीम की जड़ में तुम्हें चिठ्ठी मेरी मिल जायेगी
रख गयी थी जिस जगह तुम बेर कुछ मेरे लिये
ठीक तुमको उस जगह पर इक अंगूठी पायेगी
याद है तुझको मैं तेरे गेट पे झूला किया
देखना जाकर उधर ख़ुशबू मेरी मिल जायेगी
दोपहर हो गयी कि सूरज सर पे है मेरे
क्या बात है न कॉल न मैसेज किया कोई
चाय पीकर फिर से अब तुम सो गयी हो क्या
या किसी के ख़्वाब में गुम हो गयी हो क्या
कोई और भी रौशन है क्या मेरे दीये के बाद
कोई और भी कुछ कर गया मेरे किये के बाद
क्या मर गया हूँ मैं तेरे दिल-द्वार के अंदर
कोई प्यार का क़तरा नहीं क्या प्यार के अंदर
दिखता नहीं क्या मुझमें अब तुमको कोई फ़ायदा
तेरे आशिक़ों की क्या कतारें हो गयी ज़ियादा
क्या गिन रही हो मुझको भी फ़ेहरिस्त में
लो डाल दिया नंबर तुम्हारा ब्लैकलिस्ट में
दोपहर हो गयी कि सूरज सर पे है मेरे
क्या बात है न कॉल न मैसेज किया कोई
चाय पीकर फिर से अब तुम सो गयी हो क्या
या किसी के ख़्वाब में गुम हो गयी हो क्या
कोई और भी रौशन है क्या मेरे दीये के बाद
कोई और भी कुछ कर गया मेरे किये के बाद
क्या मर गया हूँ मैं तेरे दिल-द्वार के अंदर
कोई प्यार का क़तरा नहीं क्या प्यार के अंदर
दिखता नहीं क्या मुझमें अब तुमको कोई फ़ायदा
तेरे आशिक़ों की क्या कतारें हो गयी ज़ियादा
क्या गिन रही हो मुझको भी फ़ेहरिस्त में
लो डाल दिया नंबर तुम्हारा ब्लैकलिस्ट में
तुम फिर चली आयी हो इस बरसात में जानाँ
मेरी नहीं मानी न तुमने वक़्त पहचाना
ये केश हैं कंबल तुम्हारी पीठ को ढककर
कुछ कह रहे शायद ये मुझसे एकजुट होकर
आज फिर सलवार तुमने तंग पहनी है
उसपे भी कुर्ती तुम्हारी कुछ तो झीनी है
ले लिया सारा नज़ारा बादलों ने अब
बह गयी पानी की बूँदें अंदर-ओ-अंदर
मैं नहीं भीगा कि मेरे पास मत आना
मैं जानता हूँ आयी तो लिपटोगी तुम जानाँ
मैं क्या करुँगा फिर मुझे ख़ुद भी नहीं मालूम
और क्या करोगी तुम कि फिर ये भी नहीं मालूम
चलो जब बात है ऐसी तो थोड़ा भीग लेते हैं
शैतानियाँ थोड़ी सी तुमसे सीख लेते हैं
गाना कोई बिछड़न का हो गाने नहीं दूँगा
इस रात तो मैं तुमको अब जाने नहीं दूँगा
तुम फिर चली आयी हो इस बरसात में जानाँ
मेरी नहीं मानी न तुमने वक़्त पहचाना
ये केश हैं कंबल तुम्हारी पीठ को ढककर
कुछ कह रहे शायद ये मुझसे एकजुट होकर
आज फिर सलवार तुमने तंग पहनी है
उसपे भी कुर्ती तुम्हारी कुछ तो झीनी है
ले लिया सारा नज़ारा बादलों ने अब
बह गयी पानी की बूँदें अंदर-ओ-अंदर
मैं नहीं भीगा कि मेरे पास मत आना
मैं जानता हूँ आयी तो लिपटोगी तुम जानाँ
मैं क्या करुँगा फिर मुझे ख़ुद भी नहीं मालूम
और क्या करोगी तुम कि फिर ये भी नहीं मालूम
चलो जब बात है ऐसी तो थोड़ा भीग लेते हैं
शैतानियाँ थोड़ी सी तुमसे सीख लेते हैं
गाना कोई बिछड़न का हो गाने नहीं दूँगा
इस रात तो मैं तुमको अब जाने नहीं दूँगा
बहुत सोचता हूँ चुपचाप से बैठे-बैठे
मेला है सहेलियों से घिरी है तू
तुझे तेरे नाम से कैसे पुकारूँ
ख़्याल आता है कोई नज़्म लिखूँ
तेरी-मेरी बातों पर, साथ गुज़ारी रातों पर
होंठ चूमते गालों पर, तेरे बरसाती बालों पर
लेकिन समंदर को सुराही में कैसे उतारूँ
तुझे तेरे नाम से कैसे पुकारूँ
तेरी हँसी कि जैसे मकई का दाना फूट पड़ा हो
या फिर कि जैसे कोई तारा टूट पड़ा हो
बिजली चमकी हो कि जैसे सुनहरी रात में
चाँद आधा टूटकर तिरे होंठों पे आ गिरा हो
तेरी हँसी को अपनी नज़्मों में उतारूँ तो कैसे उतारूँ
तुझे तेरे नाम से कैसे पुकारूँ
बहुत सोचता हूँ चुपचाप से बैठे-बैठे
मेला है सहेलियों से घिरी है तू
तुझे तेरे नाम से कैसे पुकारूँ
ख़्याल आता है कोई नज़्म लिखूँ
तेरी-मेरी बातों पर, साथ गुज़ारी रातों पर
होंठ चूमते गालों पर, तेरे बरसाती बालों पर
लेकिन समंदर को सुराही में कैसे उतारूँ
तुझे तेरे नाम से कैसे पुकारूँ
तेरी हँसी कि जैसे मकई का दाना फूट पड़ा हो
या फिर कि जैसे कोई तारा टूट पड़ा हो
बिजली चमकी हो कि जैसे सुनहरी रात में
चाँद आधा टूटकर तिरे होंठों पे आ गिरा हो
तेरी हँसी को अपनी नज़्मों में उतारूँ तो कैसे उतारूँ
तुझे तेरे नाम से कैसे पुकारूँ
"तुम्हारे बिना कुछ नहीं है
ये ख़ामोशियाँ, ये रातें,
ये सुनसान गलियाँ,
ये बिख़रे हुए ख़्वाब...
मैं तुम्हारे बिना खो गया हूँ
एक अनजान शहर में,
एक अनजान सी ज़िंदगी में,
एक अनजान सा मैं..."
نظم
"بجھتے چراغوں کا دھواں"
اب بھی کِھل جاتے ہیں کچھ پُھول تری یادوں کے
اب بھی جَل اٹھتی ہیں کچھ شمعیں ترے نام کے ساتھ
اب بھی مَنظر مری آنکھوں سے اُلجھ جاتے ہیں
اب بھی آتی ہے مرے کانوں میں شیریں آواز
اب بھی رُک جاتے ہیں پاؤں مرے چَلتے چَلتے
لیکن اب اَجنبی لگتا ہے ہر اک موڑ مجھے
دو قَدم چَلنا بھی دُشوار ہُوا جاتا ہے
راستہ راہ کی دیوار ہُوا جاتا ہے
یاد کے بُجھتے چَراغوں کا دُھواں ہے ہر سُو
تو نہیں ہے تو اُداسی کا سَماں ہے ہر سُو
زَخم تنہائی کے سِلتے ہیں اُدھڑ جاتے ہیں
دوست مِلتے ہیں مگر مِل کے بچھڑ جاتے ہیں.
نظم
"بجھتے چراغوں کا دھواں"
اب بھی کِھل جاتے ہیں کچھ پُھول تری یادوں کے
اب بھی جَل اٹھتی ہیں کچھ شمعیں ترے نام کے ساتھ
اب بھی مَنظر مری آنکھوں سے اُلجھ جاتے ہیں
اب بھی آتی ہے مرے کانوں میں شیریں آواز
اب بھی رُک جاتے ہیں پاؤں مرے چَلتے چَلتے
لیکن اب اَجنبی لگتا ہے ہر اک موڑ مجھے
دو قَدم چَلنا بھی دُشوار ہُوا جاتا ہے
راستہ راہ کی دیوار ہُوا جاتا ہے
یاد کے بُجھتے چَراغوں کا دُھواں ہے ہر سُو
تو نہیں ہے تو اُداسی کا سَماں ہے ہر سُو
زَخم تنہائی کے سِلتے ہیں اُدھڑ جاتے ہیں
دوست مِلتے ہیں مگر مِل کے بچھڑ جاتے ہیں.
कोई जो पूछे बता ही दूँगा
वो कहानी सुना ही दूँगा
ये कहानी है उन दिनो की
अठरा उन्नीस बरस का था मैं
नई नई थी मेरी जवानी
यही से हुई शुरू कहानी
किसी की शादी में मैं गया था
उसी वो शादी में आ गई थी
मुझको पहले से जानती थी
चेहरा मेरा पहचान ती थी
कही पे पानी मैं पी रहा था
वही पे पास वो आ गई थी
सूट पहना था लाल रंग का
बगैर मेकप भी जच रही थी
मुझसे बोली की बात सुन लो
सर झुका कर मैं जी कहा फिर
इज़हार उसने कर दिया फिर
जो भी दिल में था कह गई वो
मैंने हस के यह कहा फिर
तुम तो बच्ची सी लग रही हो
अजीब बातें कर रही हो
थोड़ा गुस्से से उसने बोला
अजीब पागल लग रहे हो
मेरी चाहत पे हस रहे हो
देखो हंसना बता रहा है
तुमने मुझको चुन लिया है
उसकी बातों को देखकर फिर
उससे मैंने कह दिया फिर
उसको डरते डरते मैने
उसको दिल ये दिया फिर
नाम उसका था हूर वाला
चेहरा भी था नूर वाला
सब से थोड़ी वो हसी थी
मेरी शायद वो हर खुशी थी
वो अपने घर की कोई परी थी
अपने घर में वो लाडली थी
वो अपने घर से बड़ी रईस थी
शौक़ उसके थे नवाब वाले
अच्छा खासी चल रही थी
ये मोहब्बत की कहानी
फिर किसी सवारे हुआ कुछ ऐसा
उसकी अम्मी का फोन आया
मुझसे बोली की बात मेरी
तुम न टालोगे यू यकीं है
देखो तुमको मैं जानती हूंँ
अच्छे बच्चे हो मानती हूंँ
मैं जो कहती हूंँ उसको सुनना
मेरे बेटे तू लाज रखना
इसके पापा बड़े खफा है
बीच तुम्हारे जो चल रहा है
मैंने बोला की क्या हुकुम है
मुझसे बोली की वास्ता है
तुमको अपनी मोहब्बतों का
मेरी बेटी को भूल जाना
इसके बीच में फिर न आना
उनकी बातो की लाज रक्खी
उनको की बेटी छोड़ डाला
फिर आपने उसने हाथ काटे
खून काफी निकल चुका था
अपनी उसने आवाज़ भेजी
जिसमे वो बस रो रही थी
मैं उसके आँसू न देख पाया
उसका मैने फोन मिलाया
मेरे करते ही फोन उसने
पहली घंटी पे फोन उठाया
मैंने बोला की आ रहा हूंँ
तुमको सीने से लगाने
मुझसे बोली कल ही आना
देर ज़ायदा ना लगाना
क्या बताऊं कैसा वक्त था?
10 ररुपए भी थे नहीं जब
था बड़ा ही कश मा कश में
कैसे जाऊं शहर उसके
दिल ने बोला की बात सुन अब
कह रही है क्या रात सुन अब
फोन जो था पास मेरे
उसको मैंने बैच डाला
थोड़े पैसे फिर आ गए थे
पैसे मिलते ही खुश हुआ था
शहर उसके अब जा सकूंगा
फिर अगले दिन को मैं
शहर पोहोचा
मुझसे बोली की क्या हुआ है?
तुम्हारा नंबर क्यू बंद पड़ा है
मेरी जैबो को देखती है
मुझसे यू फिर वो पूछती है
मुझसे तुम क्या छुपा रहे हो
मुझको पागल बना रहे हो
मैंने बोला की कुछ नही था
पास मेरे फोन अपना है
बैच डाला
मेरे चेहरे को तक राही थी
फिर सीने से मेरे वो आ लगी थी
वो रो रही थी सिसकियों से
उसको बस मैं चूपा रहा था
फिर पास उसने कर लिया था
कोई पेपर ज़रा बड़ा सा
फिर कहानी में मोड़ आया
रिश्ता अपना डगमगाया
मुझसे बोली की करते क्या हो
मैंने बोला की क्यू पूछती हो
मुझसे बोली यह नाम ले कर
मुनीर देखो यह कुछ नही है
यह शायरी जो कर रहे हो
रुतबा तुमको बनाना होगा
साथ मेरे अब कामना होगा
हकीकतों से अंजान थी मैं
मोहब्बतों में नादान थी मैं
मेरी आँखें अब खुल चुकी है
जा रही हूँ छोड़ कर मैं
हो सके तो भूल जाना
और अपना बस तुम खयाल रखना
कोई जो पूछे बता ही दूँगा
वो कहानी सुना ही दूँगा
ये कहानी है उन दिनो की
अठरा उन्नीस बरस का था मैं
नई नई थी मेरी जवानी
यही से हुई शुरू कहानी
किसी की शादी में मैं गया था
उसी वो शादी में आ गई थी
मुझको पहले से जानती थी
चेहरा मेरा पहचान ती थी
कही पे पानी मैं पी रहा था
वही पे पास वो आ गई थी
सूट पहना था लाल रंग का
बगैर मेकप भी जच रही थी
मुझसे बोली की बात सुन लो
सर झुका कर मैं जी कहा फिर
इज़हार उसने कर दिया फिर
जो भी दिल में था कह गई वो
मैंने हस के यह कहा फिर
तुम तो बच्ची सी लग रही हो
अजीब बातें कर रही हो
थोड़ा गुस्से से उसने बोला
अजीब पागल लग रहे हो
मेरी चाहत पे हस रहे हो
देखो हंसना बता रहा है
तुमने मुझको चुन लिया है
उसकी बातों को देखकर फिर
उससे मैंने कह दिया फिर
उसको डरते डरते मैने
उसको दिल ये दिया फिर
नाम उसका था हूर वाला
चेहरा भी था नूर वाला
सब से थोड़ी वो हसी थी
मेरी शायद वो हर खुशी थी
वो अपने घर की कोई परी थी
अपने घर में वो लाडली थी
वो अपने घर से बड़ी रईस थी
शौक़ उसके थे नवाब वाले
अच्छा खासी चल रही थी
ये मोहब्बत की कहानी
फिर किसी सवारे हुआ कुछ ऐसा
उसकी अम्मी का फोन आया
मुझसे बोली की बात मेरी
तुम न टालोगे यू यकीं है
देखो तुमको मैं जानती हूंँ
अच्छे बच्चे हो मानती हूंँ
मैं जो कहती हूंँ उसको सुनना
मेरे बेटे तू लाज रखना
इसके पापा बड़े खफा है
बीच तुम्हारे जो चल रहा है
मैंने बोला की क्या हुकुम है
मुझसे बोली की वास्ता है
तुमको अपनी मोहब्बतों का
मेरी बेटी को भूल जाना
इसके बीच में फिर न आना
उनकी बातो की लाज रक्खी
उनको की बेटी छोड़ डाला
फिर आपने उसने हाथ काटे
खून काफी निकल चुका था
अपनी उसने आवाज़ भेजी
जिसमे वो बस रो रही थी
मैं उसके आँसू न देख पाया
उसका मैने फोन मिलाया
मेरे करते ही फोन उसने
पहली घंटी पे फोन उठाया
मैंने बोला की आ रहा हूंँ
तुमको सीने से लगाने
मुझसे बोली कल ही आना
देर ज़ायदा ना लगाना
क्या बताऊं कैसा वक्त था?
10 ररुपए भी थे नहीं जब
था बड़ा ही कश मा कश में
कैसे जाऊं शहर उसके
दिल ने बोला की बात सुन अब
कह रही है क्या रात सुन अब
फोन जो था पास मेरे
उसको मैंने बैच डाला
थोड़े पैसे फिर आ गए थे
पैसे मिलते ही खुश हुआ था
शहर उसके अब जा सकूंगा
फिर अगले दिन को मैं
शहर पोहोचा
मुझसे बोली की क्या हुआ है?
तुम्हारा नंबर क्यू बंद पड़ा है
मेरी जैबो को देखती है
मुझसे यू फिर वो पूछती है
मुझसे तुम क्या छुपा रहे हो
मुझको पागल बना रहे हो
मैंने बोला की कुछ नही था
पास मेरे फोन अपना है
बैच डाला
मेरे चेहरे को तक राही थी
फिर सीने से मेरे वो आ लगी थी
वो रो रही थी सिसकियों से
उसको बस मैं चूपा रहा था
फिर पास उसने कर लिया था
कोई पेपर ज़रा बड़ा सा
फिर कहानी में मोड़ आया
रिश्ता अपना डगमगाया
मुझसे बोली की करते क्या हो
मैंने बोला की क्यू पूछती हो
मुझसे बोली यह नाम ले कर
मुनीर देखो यह कुछ नही है
यह शायरी जो कर रहे हो
रुतबा तुमको बनाना होगा
साथ मेरे अब कामना होगा
हकीकतों से अंजान थी मैं
मोहब्बतों में नादान थी मैं
मेरी आँखें अब खुल चुकी है
जा रही हूँ छोड़ कर मैं
हो सके तो भूल जाना
और अपना बस तुम खयाल रखना
अन-गिनत फूल मोहब्बत के चढ़ाता जाऊँ
आख़िरी बार गले तुझ को लगाता जाऊँ
oo
तेरी प्यारी सी छुअन जिस्म मुअत्तर कर दे
तेरे चेहरे की चमक रात को रोशन कर दे
तेरी शोखी तेरी रंगत को चुराता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
तेरी साँसों ने महकने की अदा बख़्शी है
तूने इस दिल को धड़कने की अदा बख़्शी है
तेरी यादों के दिए दिल में जलाता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
तेरी तस्वीर को आँखो में छुपा रक्खी है
तेरी हर एक अदा दिल में बसा रक्खी है
अपनी साँसों में तेरी साँस मिलाता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
मुझसे ख़ाबों में कभी मिलने मिलाने आना
चाँद सा चेहरा कभी मुझको दिखाने आना
तेरी आँखों की ज़रा नीद चुराता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
साथ मिलकर जो गुज़ारे थे हसीं रातो दिन
जाने गुजरेंगे भला कैसे अब तुम्हारे बिन
अब इसी याद के तूफ़ां में समाता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
जाने इस शहर में फिर लौट के कब आऊँगा
पर ये वादा है तुझे भूल नहीं पाऊंगा
तेरी तस्वीर को आँखो में बसाता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
तेरे इस शहर में खुशीओं का बसेरा देखा
सुरमई शाम तो ख़ुश रंग सवेरा देखा
ऐसे लमहात को आँखों में सजाता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
मेरे आँसू तेरी चाहत नहीं लिखने देते
कांपते हाथ हक़ीक़त नहीं लिखने देते
उनको रुदाद 'रज़ा' दिल की सुनाता जाऊँ
अन-गिनत फूल मोहब्बत के चढ़ाता जाऊँ
आख़िरी बार गले तुझ को लगाता जाऊँ
oo
तेरी प्यारी सी छुअन जिस्म मुअत्तर कर दे
तेरे चेहरे की चमक रात को रोशन कर दे
तेरी शोखी तेरी रंगत को चुराता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
तेरी साँसों ने महकने की अदा बख़्शी है
तूने इस दिल को धड़कने की अदा बख़्शी है
तेरी यादों के दिए दिल में जलाता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
तेरी तस्वीर को आँखो में छुपा रक्खी है
तेरी हर एक अदा दिल में बसा रक्खी है
अपनी साँसों में तेरी साँस मिलाता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
मुझसे ख़ाबों में कभी मिलने मिलाने आना
चाँद सा चेहरा कभी मुझको दिखाने आना
तेरी आँखों की ज़रा नीद चुराता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
साथ मिलकर जो गुज़ारे थे हसीं रातो दिन
जाने गुजरेंगे भला कैसे अब तुम्हारे बिन
अब इसी याद के तूफ़ां में समाता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
जाने इस शहर में फिर लौट के कब आऊँगा
पर ये वादा है तुझे भूल नहीं पाऊंगा
तेरी तस्वीर को आँखो में बसाता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
तेरे इस शहर में खुशीओं का बसेरा देखा
सुरमई शाम तो ख़ुश रंग सवेरा देखा
ऐसे लमहात को आँखों में सजाता जाऊँ
आख़िरी बार गले.....................
oo
मेरे आँसू तेरी चाहत नहीं लिखने देते
कांपते हाथ हक़ीक़त नहीं लिखने देते
उनको रुदाद 'रज़ा' दिल की सुनाता जाऊँ