سناں کی نوک پہ قرآں سنا رہے ہیں حسین

کلامِ پاک کی عزت بچا __رہے ہیں حسین ۔


شہید ہو گئے عباس، قاسم و اکبر

اب اپنے خون سے مقتل سجا رہے ہیں حسین۔


ردائیں چھن گئیں خیمے جلے اسیر ہوئے

خدا کی راہ میں گھر کو لُٹا رہے ہیں حسین۔


ملےگی اسکے سوا صبر کی مثال کہاں

اکیلے لعل کی میت اٹھا رہے ہیں حسین۔


ہمارے دم سے ہی توحید اب بھی زندہ ہے

سنا پہ کرکے تلاوت بتا رہے ہیں حسین۔


ہیں کون اب میری نصرت کریگا غربت میں

یہ کہہ کے خاک پہ آنسوں بہا رہے ہیں حسین۔


غضب ہے ہائے کہ مقتل کی ریت میں الماسو

وہ دیکھو ننھا سا لاشہ چھپا رہے ہیں حسین

-Almas Rizvi
Sheristan
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अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम

ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम

-Ahmad Faraz
Sheristan

ग़म हँसी में छुपा दिया मैने

सबको हँस के दिखा दिया मैने

-Syeda Farah
Sheristan

मुझको अब चैन से जीने की तमन्ना _ही नहीं

बस ये ख्वाहिश है कि अब चैन से मर जाऊं मैं।


-Almas Rizvi
Sheristan

क्यों लिखूँ ज़ुल्फ़-ओ-लब-ओ-रुख़सार पे नग़्मे बहुत

प्यार की पहली नज़र रुस्वाइयाँ ही क्यों लिखूँ

-Nakul Kumar
Sheristan

इक तो मौसम सर्द है और फिर गले में दर्द है

और फिर ऊपर से मेरा तन-बदन भी ज़र्द है


आँख पीली पड़ गयी हैं रात भर जगते हुए

रो नहीं सकता कि मेरी ज़िंदगी पुर-दर्द है


फूट के रोता नहीं है देखकर वीरानियाँ

क्या कहूँ कि दिल मेरा है या कोई नामर्द है


घर में घुसता हूँ तो लगता है कि रेगिस्तान है

मेरे इक कमरे में सारे शहर भर की गर्द है


ऐसे कुछ तोहफ़े मिले मेरी मुहब्बत में मुझे

दर्द अपने दे गया है मेरा जो हमदर्द है


मर चुका हूँ मैं मुहब्बत को मनाने में कभी

सोच लो साजन मेरा कि किस क़दर बे-दर्द है


दो घड़ी बातें करो तो नोंचकर खा जायेगा

आदमी लगता नहीं लगता है कि सरदर्द है


पूछते हो क्यों मुझे है ज़िंदगी में क्या नया

और क्या है ज़िंदगी में तू है तेरा दर्द है

Nakul Kumar
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इक तो मौसम सर्द है और फिर गले में दर्द है

और फिर ऊपर से मेरा तन-बदन भी ज़र्द है


आँख पीली पड़ गयी हैं रात भर जगते हुए

रो नहीं सकता कि मेरी ज़िंदगी पुर-दर्द है


फूट के रोता नहीं है देखकर वीरानियाँ

क्या कहूँ कि दिल मेरा है या कोई नामर्द है


घर में घुसता हूँ तो लगता है कि रेगिस्तान है

मेरे इक कमरे में सारे शहर भर की गर्द है


ऐसे कुछ तोहफ़े मिले मेरी मुहब्बत में मुझे

दर्द अपने दे गया है मेरा जो हमदर्द है


मर चुका हूँ मैं मुहब्बत को मनाने में कभी

सोच लो साजन मेरा कि किस क़दर बे-दर्द है


दो घड़ी बातें करो तो नोंचकर खा जायेगा

आदमी लगता नहीं लगता है कि सरदर्द है


पूछते हो क्यों मुझे है ज़िंदगी में क्या नया

और क्या है ज़िंदगी में तू है तेरा दर्द है

-Nakul Kumar
Sheristan

यूँ मर गया है दिल मेरा मुहब्बत से ऊब कर

जैसे मर गयी मछली कोई पानी में डूब कर

-Nakul Kumar
Sheristan

पेट में दाना नहीं उपवास लेकर क्या करें

मर चुके प्यासे परिंदे प्यास लेकर क्या करें


सर्वभौमिक सत्य है कि मृत्यु का आना है तय 

मछलियाँ बगलों से फिर विश्वास लेकर क्या करें


ज़िंदगी खा जायेगी सरकार की माफ़िक हमें

फिर ज़हर की गोली या सल्फास लेकर क्या करें


पेट भरने के लिये हम दूर हैं बच्चों से अब

और फिर इससे अलग सन्यास लेकर क्या करें


सब के सब हैं जा चुके तुम भी चले ही जाओगे

फिर भी हम तुमसे कोई अब आस लेकर क्या करें


हम कि जो भूगोल से बाहर रहे सदियों तलक

फिर तुम्हारा गौरवी इतिहास लेकर क्या करें


अब तलक उपहास का हम केंद्र ही बनकर रहे

फिर तनिक मिल भी गया तो हास लेकर क्या करें

-Nakul Kumar
Sheristan

नसें जो हाथ की काटी गयी हैं

ये सब साँसे कहीं बाटी गयी हैं


जिधर भी ख़ून के क़तरे गिरें हैं

ज़मीनें सब की सब चाटी गयी हैं


मिरे घावों की जो गहराइयाँ हैं

बड़ी मुश्किल से सब पाटी गयी हैं


लहू मेरा नदी बनके बहा है

कई घाटी भी यूँ आटी गयी हैं


मिरे ही संग जली हैं आज ये सब

जो लकड़ी भी कभी काटी गयी हैं


मिरे भीतर मरा है और भी कुछ

मिरी माटी में कुछ माटी गयी हैं

-Nakul Kumar
Sheristan


तुम्हें कैसे कहें कितना सुखद है रात भर रोना

खरैरी खाट पर सोना, सुनहरी रात को ढ़ोना

पड़े रहना कहीं चुपचाप से इक ढूंढ कर कोना

दुखों को काटते रहना, नये फिर दर्द बो देना

बिता देना अभागन रात को इक लाश में ढलकर

सुबह हो जाये तो फिर वापसी इक आदमी होना

बहाकर आँसुओं को रौशनी आँखों की खो देना

दिलों के रास्ते खोना, दिलों के वास्ते खोना

तुम्हें कैसे कहें कितना सुखद है रात भर रोना

-Nakul Kumar
Sheristan

आँख से गिरता आँसू ज़ियादा खारा होता है

बेघर होकर मरता है बेचारा होता है


मीठी नदियाँ खारे सागर तक क्यों जाती हैं

क्या इनको भी दर्द बहुत ही प्यारा होता है


तारों को हल्के में लेकर इतराता है आफ़ताब

भूल गया कि हर इक सूरज तारा होता है


वक़्त से जिसकी आनाकानी चलती रहती है

उसका दुश्मन तो फिर जग ये सारा होता है


ख़ुद जलकर रौशन करता है अपनी इक दुनिया

वो कहते हैं जुगनू तो आवारा होता है


जिन लोगों को ग़म के बादल ठंडे लगते हैं

उनका अपना एक अलग सय्यारा होता है


एक मुहब्बत से तंग आ तौबा कर जाते हैं

उन लोगों के संग ऐसा दोबारा होता है


ख़ुशियों का तो आना जाना लगा रहेगा पर

ग़म का दिल में रह जाना हमवारा होता है


जाने कौन घड़ी में ज़ख़्म सुलगने लग जायें

वक़्त सभी के दर्दों का हरकारा होता है


अपने अंदर से आकर जो बाहर रहता है

किसी के भी दिल में रह ले बंजारा होता है


बो देता है ख़्वाहिश फिर रोता है सातों दिन

अपना मन ही हर ग़म का गहवारा होता है

Nakul Kumar
91

आँख से गिरता आँसू ज़ियादा खारा होता है

बेघर होकर मरता है बेचारा होता है


मीठी नदियाँ खारे सागर तक क्यों जाती हैं

क्या इनको भी दर्द बहुत ही प्यारा होता है


तारों को हल्के में लेकर इतराता है आफ़ताब

भूल गया कि हर इक सूरज तारा होता है


वक़्त से जिसकी आनाकानी चलती रहती है

उसका दुश्मन तो फिर जग ये सारा होता है


ख़ुद जलकर रौशन करता है अपनी इक दुनिया

वो कहते हैं जुगनू तो आवारा होता है


जिन लोगों को ग़म के बादल ठंडे लगते हैं

उनका अपना एक अलग सय्यारा होता है


एक मुहब्बत से तंग आ तौबा कर जाते हैं

उन लोगों के संग ऐसा दोबारा होता है


ख़ुशियों का तो आना जाना लगा रहेगा पर

ग़म का दिल में रह जाना हमवारा होता है


जाने कौन घड़ी में ज़ख़्म सुलगने लग जायें

वक़्त सभी के दर्दों का हरकारा होता है


अपने अंदर से आकर जो बाहर रहता है

किसी के भी दिल में रह ले बंजारा होता है


बो देता है ख़्वाहिश फिर रोता है सातों दिन

अपना मन ही हर ग़म का गहवारा होता है

-Nakul Kumar
Sheristan