آمد ہے انکی آج ادب کا____ مقام ہے
مسرور اس جہاں میں ہر ایک خاص و عام ہے
صدقے میں جنکے خلق ہوئی پوری کائنات
اس آخری نبی پہ___ دُرود و سلام ہے۔
جب بھی لیا سکون ملا قلب کو میرے
کتنا حسین پیارا محمّد __کا نام ہے۔
کیسے بیاں ہو آپکا حُسن و جمال کہ
یوسف کا حُسن بھی یہاں آکر تمام ہے۔
قولِ نبی ہے جو رکھے زہرا سے دشمنی
روئے زمیں پہ چلنا بھی اسکا حرام ہے۔
الماس سر جھکا لیا جب بھی لیا یہ نام
میرے لیے نبی کا یہی___ احترام ہے۔
آمد ہے انکی آج ادب کا____ مقام ہے
مسرور اس جہاں میں ہر ایک خاص و عام ہے
صدقے میں جنکے خلق ہوئی پوری کائنات
اس آخری نبی پہ___ دُرود و سلام ہے۔
جب بھی لیا سکون ملا قلب کو میرے
کتنا حسین پیارا محمّد __کا نام ہے۔
کیسے بیاں ہو آپکا حُسن و جمال کہ
یوسف کا حُسن بھی یہاں آکر تمام ہے۔
قولِ نبی ہے جو رکھے زہرا سے دشمنی
روئے زمیں پہ چلنا بھی اسکا حرام ہے۔
الماس سر جھکا لیا جب بھی لیا یہ نام
میرے لیے نبی کا یہی___ احترام ہے۔
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अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम
ग़म हँसी में छुपा दिया मैने
सबको हँस के दिखा दिया मैने
मुझको अब चैन से जीने की तमन्ना _ही नहीं
बस ये ख्वाहिश है कि अब चैन से मर जाऊं मैं।
क्यों लिखूँ ज़ुल्फ़-ओ-लब-ओ-रुख़सार पे नग़्मे बहुत
प्यार की पहली नज़र रुस्वाइयाँ ही क्यों लिखूँ
इक तो मौसम सर्द है और फिर गले में दर्द है
और फिर ऊपर से मेरा तन-बदन भी ज़र्द है
आँख पीली पड़ गयी हैं रात भर जगते हुए
रो नहीं सकता कि मेरी ज़िंदगी पुर-दर्द है
फूट के रोता नहीं है देखकर वीरानियाँ
क्या कहूँ कि दिल मेरा है या कोई नामर्द है
घर में घुसता हूँ तो लगता है कि रेगिस्तान है
मेरे इक कमरे में सारे शहर भर की गर्द है
ऐसे कुछ तोहफ़े मिले मेरी मुहब्बत में मुझे
दर्द अपने दे गया है मेरा जो हमदर्द है
मर चुका हूँ मैं मुहब्बत को मनाने में कभी
सोच लो साजन मेरा कि किस क़दर बे-दर्द है
दो घड़ी बातें करो तो नोंचकर खा जायेगा
आदमी लगता नहीं लगता है कि सरदर्द है
पूछते हो क्यों मुझे है ज़िंदगी में क्या नया
और क्या है ज़िंदगी में तू है तेरा दर्द है
इक तो मौसम सर्द है और फिर गले में दर्द है
और फिर ऊपर से मेरा तन-बदन भी ज़र्द है
आँख पीली पड़ गयी हैं रात भर जगते हुए
रो नहीं सकता कि मेरी ज़िंदगी पुर-दर्द है
फूट के रोता नहीं है देखकर वीरानियाँ
क्या कहूँ कि दिल मेरा है या कोई नामर्द है
घर में घुसता हूँ तो लगता है कि रेगिस्तान है
मेरे इक कमरे में सारे शहर भर की गर्द है
ऐसे कुछ तोहफ़े मिले मेरी मुहब्बत में मुझे
दर्द अपने दे गया है मेरा जो हमदर्द है
मर चुका हूँ मैं मुहब्बत को मनाने में कभी
सोच लो साजन मेरा कि किस क़दर बे-दर्द है
दो घड़ी बातें करो तो नोंचकर खा जायेगा
आदमी लगता नहीं लगता है कि सरदर्द है
पूछते हो क्यों मुझे है ज़िंदगी में क्या नया
और क्या है ज़िंदगी में तू है तेरा दर्द है
यूँ मर गया है दिल मेरा मुहब्बत से ऊब कर
जैसे मर गयी मछली कोई पानी में डूब कर
पेट में दाना नहीं उपवास लेकर क्या करें
मर चुके प्यासे परिंदे प्यास लेकर क्या करें
सर्वभौमिक सत्य है कि मृत्यु का आना है तय
मछलियाँ बगलों से फिर विश्वास लेकर क्या करें
ज़िंदगी खा जायेगी सरकार की माफ़िक हमें
फिर ज़हर की गोली या सल्फास लेकर क्या करें
पेट भरने के लिये हम दूर हैं बच्चों से अब
और फिर इससे अलग सन्यास लेकर क्या करें
सब के सब हैं जा चुके तुम भी चले ही जाओगे
फिर भी हम तुमसे कोई अब आस लेकर क्या करें
हम कि जो भूगोल से बाहर रहे सदियों तलक
फिर तुम्हारा गौरवी इतिहास लेकर क्या करें
अब तलक उपहास का हम केंद्र ही बनकर रहे
फिर तनिक मिल भी गया तो हास लेकर क्या करें
पेट में दाना नहीं उपवास लेकर क्या करें
मर चुके प्यासे परिंदे प्यास लेकर क्या करें
सर्वभौमिक सत्य है कि मृत्यु का आना है तय
मछलियाँ बगलों से फिर विश्वास लेकर क्या करें
ज़िंदगी खा जायेगी सरकार की माफ़िक हमें
फिर ज़हर की गोली या सल्फास लेकर क्या करें
पेट भरने के लिये हम दूर हैं बच्चों से अब
और फिर इससे अलग सन्यास लेकर क्या करें
सब के सब हैं जा चुके तुम भी चले ही जाओगे
फिर भी हम तुमसे कोई अब आस लेकर क्या करें
हम कि जो भूगोल से बाहर रहे सदियों तलक
फिर तुम्हारा गौरवी इतिहास लेकर क्या करें
अब तलक उपहास का हम केंद्र ही बनकर रहे
फिर तनिक मिल भी गया तो हास लेकर क्या करें
नसें जो हाथ की काटी गयी हैं
ये सब साँसे कहीं बाटी गयी हैं
जिधर भी ख़ून के क़तरे गिरें हैं
ज़मीनें सब की सब चाटी गयी हैं
मिरे घावों की जो गहराइयाँ हैं
बड़ी मुश्किल से सब पाटी गयी हैं
लहू मेरा नदी बनके बहा है
कई घाटी भी यूँ आटी गयी हैं
मिरे ही संग जली हैं आज ये सब
जो लकड़ी भी कभी काटी गयी हैं
मिरे भीतर मरा है और भी कुछ
मिरी माटी में कुछ माटी गयी हैं
नसें जो हाथ की काटी गयी हैं
ये सब साँसे कहीं बाटी गयी हैं
जिधर भी ख़ून के क़तरे गिरें हैं
ज़मीनें सब की सब चाटी गयी हैं
मिरे घावों की जो गहराइयाँ हैं
बड़ी मुश्किल से सब पाटी गयी हैं
लहू मेरा नदी बनके बहा है
कई घाटी भी यूँ आटी गयी हैं
मिरे ही संग जली हैं आज ये सब
जो लकड़ी भी कभी काटी गयी हैं
मिरे भीतर मरा है और भी कुछ
मिरी माटी में कुछ माटी गयी हैं
तुम्हें कैसे कहें कितना सुखद है रात भर रोना
खरैरी खाट पर सोना, सुनहरी रात को ढ़ोना
पड़े रहना कहीं चुपचाप से इक ढूंढ कर कोना
दुखों को काटते रहना, नये फिर दर्द बो देना
बिता देना अभागन रात को इक लाश में ढलकर
सुबह हो जाये तो फिर वापसी इक आदमी होना
बहाकर आँसुओं को रौशनी आँखों की खो देना
दिलों के रास्ते खोना, दिलों के वास्ते खोना
तुम्हें कैसे कहें कितना सुखद है रात भर रोना
तुम्हें कैसे कहें कितना सुखद है रात भर रोना
खरैरी खाट पर सोना, सुनहरी रात को ढ़ोना
पड़े रहना कहीं चुपचाप से इक ढूंढ कर कोना
दुखों को काटते रहना, नये फिर दर्द बो देना
बिता देना अभागन रात को इक लाश में ढलकर
सुबह हो जाये तो फिर वापसी इक आदमी होना
बहाकर आँसुओं को रौशनी आँखों की खो देना
दिलों के रास्ते खोना, दिलों के वास्ते खोना
तुम्हें कैसे कहें कितना सुखद है रात भर रोना
आँख से गिरता आँसू ज़ियादा खारा होता है
बेघर होकर मरता है बेचारा होता है
मीठी नदियाँ खारे सागर तक क्यों जाती हैं
क्या इनको भी दर्द बहुत ही प्यारा होता है
तारों को हल्के में लेकर इतराता है आफ़ताब
भूल गया कि हर इक सूरज तारा होता है
वक़्त से जिसकी आनाकानी चलती रहती है
उसका दुश्मन तो फिर जग ये सारा होता है
ख़ुद जलकर रौशन करता है अपनी इक दुनिया
वो कहते हैं जुगनू तो आवारा होता है
जिन लोगों को ग़म के बादल ठंडे लगते हैं
उनका अपना एक अलग सय्यारा होता है
एक मुहब्बत से तंग आ तौबा कर जाते हैं
उन लोगों के संग ऐसा दोबारा होता है
ख़ुशियों का तो आना जाना लगा रहेगा पर
ग़म का दिल में रह जाना हमवारा होता है
जाने कौन घड़ी में ज़ख़्म सुलगने लग जायें
वक़्त सभी के दर्दों का हरकारा होता है
अपने अंदर से आकर जो बाहर रहता है
किसी के भी दिल में रह ले बंजारा होता है
बो देता है ख़्वाहिश फिर रोता है सातों दिन
अपना मन ही हर ग़म का गहवारा होता है
आँख से गिरता आँसू ज़ियादा खारा होता है
बेघर होकर मरता है बेचारा होता है
मीठी नदियाँ खारे सागर तक क्यों जाती हैं
क्या इनको भी दर्द बहुत ही प्यारा होता है
तारों को हल्के में लेकर इतराता है आफ़ताब
भूल गया कि हर इक सूरज तारा होता है
वक़्त से जिसकी आनाकानी चलती रहती है
उसका दुश्मन तो फिर जग ये सारा होता है
ख़ुद जलकर रौशन करता है अपनी इक दुनिया
वो कहते हैं जुगनू तो आवारा होता है
जिन लोगों को ग़म के बादल ठंडे लगते हैं
उनका अपना एक अलग सय्यारा होता है
एक मुहब्बत से तंग आ तौबा कर जाते हैं
उन लोगों के संग ऐसा दोबारा होता है
ख़ुशियों का तो आना जाना लगा रहेगा पर
ग़म का दिल में रह जाना हमवारा होता है
जाने कौन घड़ी में ज़ख़्म सुलगने लग जायें
वक़्त सभी के दर्दों का हरकारा होता है
अपने अंदर से आकर जो बाहर रहता है
किसी के भी दिल में रह ले बंजारा होता है
बो देता है ख़्वाहिश फिर रोता है सातों दिन
अपना मन ही हर ग़म का गहवारा होता है